28 अक्टूबर 2025 को सरकार ने एक अहम कदम उठाते हुए Eighth Central Pay Commission (8वें केन्द्रीय वेतन आयोग) के लिए टर्म्स ऑफ रेफरेंस (ToR) को मंजूरी दे दी है। इस निर्णय का मतलब है कि केंद्रीय कर्मचारियों, पेंशनधारकों और अन्य जुड़े हितधारकों का वेतन, भत्ते और सेवानिवृत्ति लाभों का व्यापक पुनरीक्षण अब आधिकारिक रूप से शुरू हो गया है।
इस आयोग की अध्यक्षता न्यायमूर्ति रंजन गोगोई देशाई (Justice Ranjana Prakash Desai) करेंगी, प्रोफेसर पुलक घोष सदस्य होंगे, और पंकज जैन को आयोग का सदस्य-सचिव नियुक्त किया गया है।

क्या है ToR और क्यों अहम है?
ToR यानी Terms of Reference उस दिशा-निर्देश को कहते हैं जिसके आधार पर आयोग अपनी सिफारिशें तैयार करेगा — जैसे मियाद, स्वरूप, कौन-कौन से मुद्दे शामिल होंगे आदि। इस बार की ToR मंजूरी इस बात का संकेत हैं कि आगे के काम में ढांचागत प्रक्रिया पूरी तरह सक्रिय हो गई है।
मुख्य बिंदु क्या तय हुए हैं?
– आयोग अस्थायी होगा, जिसमें एक अध्यक्ष, एक भाग-कालीन सदस्य (Part-Time Member) और एक सदस्य-सचिव शामिल होंगे।
– आयोग को अपनी सिफारिशें 18 महीनों के भीतर प्रस्तुत करनी होंगी।
– सिफारिशें संभवतः 1 जनवरी 2026 से प्रभावी हो सकती हैं।
– आयोग को अपनी सिफारिशें करते समय निम्न बातें ध्यान में रखनी होंगी:
-
देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति और वित्त-सावधानी (fiscal prudence)
-
विकास और कल्याण के लिए संसाधन उपलब्धता
-
गैर-योगदानित (non-contributory) पेंशन योजनाओं का बोझ
-
राज्यों की अर्थ व्यवस्था पर संभावित प्रभाव
-
सी.पी.एस.यू. (Central Public Sector Undertakings) और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों की वर्तमान वेतन-भत्ता संरचना और कार्य-स्थितियाँ।
इस निर्णय का असर किन पर होगा?
इस निर्णय का लाभ लगभग 50 लाख केंद्रीय कर्मचारियों और करीब 65-70 लाख पेंशनधारकों को हो सकता है। यह कदम सिर्फ वेतन बढ़ाने तक सीमित नहीं है — बल्कि यह समग्र सेवा-स्थितियों, भत्तों और सेवानिवृत्ति लाभों के पुनरावलोकन की दिशा में है।
क्यों चर्चा का विषय बना है?
– पिछले आयोग Seventh Central Pay Commission की सिफारिशें 1 जनवरी 2016 से लागू हुई थीं। इसके बाद से महंगाई, जीवन-यापन की लागत और काम करने की परिस्थितियों में काफी बदलाव हुआ है।
– कर्मचारी संघ-संस्थाएँ लंबे समय से वेतन-भत्तों में सुधार की मांग कर रही थीं। इस मंजूरी से उन मांगों को गति मिल सकती है।
– हालांकि, सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि इससे जुड़ी सिफारिशें करते समय सभी हितों के बीच संतुलन बनाए रखना होगा — अर्थात् कर्मचारियों की बेहतर मांगों और सरकारी वित्त की सीमाओं के बीच।
कर्मचारियों को क्या उम्मीद है?
– पहली बात: वेतन-भत्ता एवं भत्तों में सुधार।
– दूसरी: पेंशन लाभों में पुनरावलोकन और संभवतः बढ़ोतरी।
– तीसरी: कार्य-स्थितियों, ग्रेड-पे आदि में बदलाव।
– चौथी: पिछले 10 सालों में लागत-उठान और महंगाई को ध्यान में रखते हुए समायोजन।
आगे क्या रहेगा?
-
आयोग का गठन एवं पदाधिकारियों की नियुक्ति।
-
विभिन्न विभागों, कर्मचारियों के संगठनों और राज्यों से सलाह-मशविरा।
-
आयोग अपनी रिपोर्ट तैयार करेगा और सुझाव केंद्रीय मंत्रिमंडल को देगा।
-
कभी-कभी आयोग बीच-बीच में अंतरिम रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर सकता है।
यह कदम केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों और पेंशनधारकों के लिए एक सकारात्मक संकेत है। जहां एक ओर बेहतर वेतन-भत्ता और बेहतर सेवा-स्थितियों की उम्मीद बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर, सरकार के सामने चुनौती यह है कि कैसे आर्थिक रूप से संतुलित और टिकाऊ सुझाव पेश किए जाएँ। इस प्रक्रिया का परिणाम आने वाले वर्षों में न सिर्फ कामगारों के जीवन-मान को प्रभावित करेगा, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र की भर्ती, खर्च-ढाँचा और अर्थव्यवस्था-प्रबंधन पर भी असर डालेगा।