सी. पी. राधाकृष्णन बने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति, विपक्ष के उम्मीदवार को 152 वोटों से हराया
भारत में संवैधानिक व्यवस्था का एक और महत्वपूर्ण चरण पूरा हो गया है क्योंकि सीपी राधाकृष्णन (Chandrapuram Ponnusamy Radhakrishnan) ने 15वाँ उपराष्ट्रपति पद संभाला है।राधाकृष्णन, जिनकी उम्र 68 वर्ष है और जो पूर्व में महाराष्ट्र के राज्यपाल रह चुके हैं, मंगलवार को भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित हुए। उन्होंने संयुक्त विपक्ष के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 मतों के अंतर से हराया।
राधाकृष्णन जन्म: 4 मई 1957
स्थान: तमिलनाडु, भारत
भारत के 15वें उपराष्ट्रपति (2025 से)
पूर्व राज्यपाल:
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झारखंड (2023–2024)
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महाराष्ट्र (अतिरिक्त प्रभार) (2024)

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NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए नामित किया
समाचार एजेंसी ANI के अनुसार, एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को कुल 427 सांसदों का समर्थन पहले से ही सुनिश्चित था। इसके अलावा वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के 11 सांसदों ने भी राधाकृष्णन को समर्थन दिया। इस समर्थन के चलते राधाकृष्णन को अपेक्षित संख्या से 14 अधिक वोट मिले, जिससे विपक्षी दलों के भीतर क्रॉस वोटिंग की अटकलें तेज हो गईं।
हालाँकि कागज़ी तौर पर NDA को 427 सांसदों का समर्थन प्राप्त था, लेकिन YSR कांग्रेस पार्टी के 11 सांसदों ने भी राधाकृष्णन के पक्ष में मतदान किया। हैरानी की बात यह रही कि NDA के उम्मीदवार को कुल 14 अतिरिक्त वोट मिले, जिससे विपक्षी खेमे से क्रॉस-वोटिंग की अटकलें तेज़ हो गईं।
वोटिंग में कुल 13 सांसदों ने मतदान से दूरी बनाई (अवकाश लिया)। इनमें शामिल थे:
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बीजू जनता दल (BJD) के 7 सांसद,
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भारत राष्ट्र समिति (BRS) के 4 सांसद,
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शिरोमणि अकाली दल (SAD) के 1 सांसद, और
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1 स्वतंत्र (इंडिपेंडेंट) सांसद।
यह चुनाव 21 जुलाई को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद आवश्यक हुआ। धनखड़ ने अपने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।
उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होने के बाद, राधाकृष्णन ने गुरुवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया। एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत को अगले आदेश तक महाराष्ट्र का अतिरिक्त प्रभार सौंपा है।
शपथ ग्रहण समारोह से पहले, कई राजनीतिक नेता इस आयोजन में शामिल होने के लिए नई दिल्ली पहुंचे। इनमें शामिल थे:
ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी,कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत,आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू,पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक गुलाब चंद कटारिया,

उप-राष्ट्रपति चुनाव से पहले सांसदों को लिखे एक पत्र में, कोयंबटूर के ‘वाजपेयी’ कहे जाने वाले सी.पी. राधाकृष्णन ने अपनी तमिल पहचान पर ज़ोर दिया और अपने राज्य के कई महान नेताओं के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की। उन्होंने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष और मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्यमंत्री रहे के. कामराज सहित कई कांग्रेस नेताओं और पूर्व राष्ट्रपतियों जैसे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का ज़िक्र करते हुए बताया कि वे इन सभी से प्रभावित रहे हैं।
हालांकि, उनका भविष्य दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा से प्रेरित दिखाई देता है। उन्होंने अनुच्छेद 370 और 35A को हटाने को एक मज़बूत और एकजुट भारत की नींव रखने वाला कदम बताया। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे सहकारी संघवाद (cooperative federalism) को मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
सी. पी. राधाकृष्णन उन नेताओं में से हैं जिन्होंने निचले स्तर से राजनीति की शुरुआत कर भारत के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद तक का सफर तय किया। उनके संयमित नेतृत्व, गहरी वैचारिक समझ और संगठनात्मक कौशल ने उन्हें एक विवेकी और विश्वसनीय नेता के रूप में स्थापित किया है। अब भारत की संसद में उनका योगदान, विशेष रूप से राज्यसभा के सभापति के रूप में, आने वाले वर्षों में लोकतंत्र की दिशा तय करेगा।
उनका चयन दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। राधाकृष्णन का साफ-सुथरा राजनीतिक जीवन और सशक्त वक्तव्य शैली उन्हें देश की नई भूमिका के लिए उपयुक्त बनाती है।