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Nepal’s Gen Z Protests 2025: Youth Rise Against Social Media Ban and Corruption-सोशल मीडिया प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं का उभार

नेपाल में जनआक्रोश: सोशल मीडिया प्रतिबंध के बाद देश हिंसा की चपेट में

8 सितम्बर 2025 को नेपाल सरकार द्वारा प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अचानक लगाए गए प्रतिबंध ने देशभर में गुस्से की लहर दौड़ा दी। यह प्रतिबंध कथित रूप से “गलत सूचना और डिजिटल सुरक्षा” के नाम पर लगाया गया था, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला बताया। शुरुआत में शांतिपूर्ण रहे प्रदर्शन जल्द ही उग्र हो गए, और राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में हिंसा भड़क उठी। संसद भवन में घुसपैठ, नेताओं के घरों पर हमले और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की घटनाओं ने हालात को और गंभीर बना दिया। अब तक कम से कम 19 लोगों की मौत और 400 से अधिक के घायल होने की पुष्टि हुई है। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने कर्फ्यू लगा दिया है और सेना की मदद ली जा रही है।

नेपाल में जारी Gen Z आंदोलन के दौरान हुई हिंसा ने एक और दर्दनाक मोड़ ले लिया। पूर्व प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल की पत्नी, रज्यलक्ष्मी चित्रकार, की मृत्यु उस समय हो गई जब प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर उनका घर आग के हवाले कर दिया।

सूत्रों के अनुसार, यह घटना उस समय हुई जब प्रदर्शनकारी नेताओं के आवासों को निशाना बना रहे थे। आग लगने के बाद उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका।

यह घटना देश में फैली राजनीतिक अस्थिरता और जनाक्रोश की भयावह स्थिति को दर्शाती है, जो सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार, और नेतृत्व की जवाबदेही की कमी जैसे मुद्दों को लेकर भड़की है।

सरकार ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं, जबकि कई शहरों में कर्फ्यू और सुरक्षा को और कड़ा कर दिया गया है।

इन प्रदर्शनों को आमतौर पर “Gen Z प्रदर्शन” कहा जा रहा है, जिसमें मुख्य रूप से 30 वर्ष से कम आयु के युवा नेपाली शामिल हैं। कई प्रदर्शनकारी स्कूल या कॉलेज की यूनिफॉर्म में सड़कों पर उतरे। ये प्रदर्शन किसी राजनीतिक दल से औपचारिक रूप से जुड़े नहीं हैं, बल्कि 2015 में स्थापित “हामी नेपाल” नामक एक युवा-केंद्रित गैर-सरकारी संगठन द्वारा समन्वित बताए जा रहे हैं।

काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह, जो एक स्वतंत्र राजनेता हैं और जिन्होंने सोशल मीडिया अभियान के ज़रिए मेयर का चुनाव जीता था, ने इन प्रदर्शनों के प्रति खुले तौर पर समर्थन जताया है।

सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध के साथ-साथ, प्रदर्शनकारियों ने भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और शासन में जवाबदेही की कमी को लेकर भी आवाज़ उठाई। उन्होंने राजनीतिक तंत्र में मौजूद विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की आलोचना करते हुए बार-बार “नेपो बेबीज़” (Nepo Babies) शब्द का प्रयोग किया।

प्रदर्शनकारियों की माँगें कई स्तरों पर फैली हुई हैं — सिर्फ सोशल मीडिया प्रतिबंध ही नहीं, बल्कि शासन की बड़ी खामियों को लेकर भी आवाज़ उठाई जा रही है। मुख्य माँगें इस प्रकार हैं:

नेपाल: संसद भवन में आग, Gen Z प्रदर्शनकारियों पर हमला करने का आरोप

काठमांडू, नेपाल:
सोमवार देर रात नेपाल की राजधानी काठमांडू स्थित संसद भवन में आग लग गई, जिससे देश में पहले से जारी राजनीतिक संकट और भी गहरा हो गया है।
प्रत्यक्षदर्शियों और स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, Gen Z आंदोलन से जुड़े कुछ प्रदर्शनकारियों ने संसद परिसर में घुसकर तोड़फोड़ की और आगजनी की घटना को अंजाम दिया

घटना के समय संसद सत्र स्थगित था, लेकिन भवन में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने आग बुझाने की कोशिश की। प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, भवन के एक हिस्से को नुकसान पहुंचा है, हालांकि पूरी स्थिति का आकलन जारी है।

सरकार ने घटना की निंदा करते हुए सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है और काठमांडू में कर्फ्यू लगा दिया गया है।

नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने मंगलवार को इस्तीफा दे दिया, क्योंकि काठमांडू और देश के अन्य हिस्सों में लगातार दूसरे दिन Gen Z के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन तेज़ हो गए। श्री ओली के सचिवालय ने उनके इस्तीफे की पुष्टि की है।

नेपाल में हुए हालिया Gen Z के नेतृत्व वाले उग्र विरोध प्रदर्शनों ने न सिर्फ सरकार को झुका दिया, बल्कि देश की राजनीतिक दिशा को भी एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफ़े, संसद में आगजनी, नेताओं के घरों पर हमले और हजारों कैदियों के फरार होने के बाद अब सवाल है:

अब नेपाल में आगे क्या होगा?

सरकार का पतन हो चुका है, और अब संभावना है कि एक अंतरिम (अस्थायी) सरकार बनेगी।
कुछ रिपोर्टों में बताया गया है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुषिला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाए जाने की चर्चा है — एक ऐसा चेहरा जो निष्पक्ष और युवाओं को स्वीकार्य हो।

जनता के गुस्से और राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए संभव है कि अगले कुछ महीनों में आम चुनावों की घोषणा हो।
इस बार जनता खासकर युवा वर्ग, पारंपरिक दलों के बजाय नई, ईमानदार और स्वतंत्र आवाज़ों को प्राथमिकता दे सकता है।

प्रदर्शनकारियों की माँगों के अनुसार, अब सरकार पर नीतिगत बदलावों का दबाव होगा:

सुरक्षा और शांति बहाली

देश के कई हिस्सों में सेना और पुलिस तैनात की जा चुकी है। लेकिन अब जरूरत है संवाद, शांति वार्ता, और विश्वास बहाली की — ताकि आम जनता को सुरक्षा का एहसास हो।

अंतरराष्ट्रीय समर्थन और निगरानी

संयुक्त राष्ट्र, भारत, चीन और अन्य अंतरराष्ट्रीय शक्तियाँ नेपाल की स्थिति पर नज़र रख रही हैं।
संभावना है कि वे शांति प्रक्रिया, चुनावों की पारदर्शिता, और मानवाधिकारों की रक्षा में मदद करें।

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अब नेपाल के सामने दो रास्ते हैं:

अब यह सरकार, सेना और नागरिक समाज पर निर्भर करता है कि वे किस दिशा में देश को लेकर जाते हैं।

 

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