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Delhi Cloud Seeding: प्रदूषण से राहत की उम्मीद टूटी, दिल्ली में फेल हुआ क्लाउड सीडिंग ट्रायल

वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझती दिल्ली में, सरकार ने एक नया उपाय अपनाया है — क्लाउड सीडिंग। इसका उद्देश्य है कि बादलों में रसायन डालकर कृत्रिम वर्षा कराई जाए, जिससे हवा में मौजूद प्रदूषक तत्व धुल कर नीचे आ जाएँ।

क्या हुआ है?

  1. 28 अक्टूबर 2025 को IIT कानपुर की टीम ने दिल्ली-एनसीआर के कुछ इलाकों में क्लाउड सीडिंग का ट्रायल किया। इस दौरान विमान से सिल्वर आयोडाइड और सोडियम क्लोराइड जैसे मिश्रण बादलों में छोड़े गए। विमान ने खेड़का, बुराड़ी, मयूर विहार आदि क्षेत्रों के ऊपर उड़ान भरी थी।

  2. पर्यावरण मंत्री मंजींदर सिंह सिरसा ने कहा है कि यदि मौसम उपयुक्त रहा, तो 15 मिनट से 4 घंटों के भीतर बारिश हो सकती थी।

किन वजहों से सफलता नहीं मिली?

बादलों में नमी (ह्यूमिडिटी) काफी कम थी — अनुमानित सिर्फ 10-20 % तक। जबकि आमतौर पर क्लाउड सीडिंग के लिए ~50% या उससे अधिक नमी चाहिए होती है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि “हर बादल” क्लाउड सीडिंग के लिए उपयुक्त नहीं होता।ट्रायल के बावजूद दिल्ली में स्पष्ट, तीव्र बारिश नहीं हुई।

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खर्च एवं स्थिरता के सवाल

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस प्रकार के ट्रायल पर करोड़ों रुपये का खर्च हो रहा है — एक अनुमान के अनुसार ~3.2 करोड़ रुपये पांच परीक्षणों के लिए।

विशेषज्ञों की राय

अधिकांश मौसम-विज्ञानी एवं पर्यावरण विश्लेषक कह रहे हैं कि Cloud Seeding यानी बादल सीडिंग किसी जादू की गोली नहीं है — ये एक सीमित एवं काफी हालत-पर निर्भर उपाय है।

जैसे कि Anumita Roychowdhury (Centre for Science and Environment) कहती हैं:

“यह शहर की असली समस्याओं — वाहन उत्सर्जन, निर्माण धूल, पराली जला­ना — को नहीं छूता। एक महँगा, अस्थायी उपाय है।”

मौसम विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि ‘बादल के होने’ का मतलब ‘क्लाउड सीडिंग के अनुकूल बादल’ नहीं होता। उदाहरण के लिए, Akshay Deoras ने कहा:

“मौसम में कई तरह के बादल हैं — सिर्फ इसलिए कि बादल है, इसका मतलब यह उपाय सफल होगा, नहीं। नमी का स्तर बहुत कम था।”

क्या स्वास्थ्य या पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव हो सकता है? कुछ डॉक्टरों-विज्ञानी ने चेतावनी दी है कि Silver Iodide जैसे एजेंट्स का बहु-विपरीत प्रभाव अभी पूरी तरह नहीं जाना गया है — हालांकि “सामान्य उपयोग में तुरंत खतरनाक नहीं” कहा गया है।

मौसम-विश्लेषण व दिल्ली की चुनौतियाँ

Delhi में सर्दियों में वायु गुणवत्ता बहुत तेजी से गिर जाती है — ठंडी हवा, कम हवा की गति, व ऊपर से पराली जलाने, निर्माण-धूल, वाहन उत्सर्जन आदि मिल जाते हैं। इस तरह के मौसम में बादल अक्सर सूखे होते हैं या उनमें पर्याप्त नमी नहीं होती — जिसके चलते क्लाउड सीडिंग मुश्किल हो जाती है। टाइमिंग महत्वपूर्ण है: पहले जुलाई में ट्रायल किए जाने थे लेकिन मॉनसून सक्रिय होने के कारण उनकी शुरुआत टल गई। यदि मौसम सही हो — जैसे पश्चिमी विक्षोभ (western disturbance) के दौर में बारिश-वाले बादल हों — तो यह काम बेहतर किया जा सकता है। 

आगे-क्या होगा?

सरकार ने कहा है कि सफल होने पर इस प्रक्रिया को नवंबर से फरवरी तक (सर्दियों के मौसम में) जारी रखा जा सकता है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि बेहतर परिणाम के लिए उचित मौसम, उच्च नमी और स्फूर्त बादल प्रणाली जरूरी है—इनके बिना क्लाउड सीडिंग व्यर्थ हो सकती है।

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग एक प्रयास है — प्रदूषण से तुरंत राहत देने के लिए एक विकल्प। लेकिन यह विज्ञानी तौर पर पूरी तरह साबित नहीं है कि यह हर बार काम करेगा।

इसे बड़ी सिफारिश के रूप में नहीं, बल्कि एक प्रयोगात्मक रणनीति के रूप में देखा जाना चाहिए।

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